रविवार, 28 फ़रवरी 2010

कविता

प्रेम को न दान दो न दो दया
प्रेम तो सदेव ही समृद्ध है
प्रेम है की ज्योति स्नेह एक है
प्रेम है की प्राण देह एक है
प्रेम है की विश्व गेह एक है
प्रेमहीन गति प्रगति विरुद्ध है
प्रेम तो सदेव ही समृद्ध है ...........
------गोपाल दास नीरज
प्रेम का त्यौहार होली आप सभी के जीवन में नई खुशिया लाये ।

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