मंगलवार, 3 जुलाई 2012

naxalvaad

छत्तीसगढ़ में रात के अँधेरे में आदिवासिओ को मारकर उन्हें नक्सली बना दिया जाता है ... ऊपर से कह रहे की अँधेरे में एरिया वेपन का प्रयोग नहीं किया .. क्या कम है...? तर्क देते हैं जब सुरक्षा बल मारे जाते हैं तब मानवाधिकारवादी कुछ नहीं बोलते ....भारत के मूल वासी ये आदिवासी ही हैं ..... ये हमें समझना होगा ....संसाधनों पर पहला हक़ उनका है ... क्यूंकि अभी भी वह प्रकृति के साथ जुड़े हुए हैं ... उन क्षेत्रो को प्रशासनिक नियंत्रण में लेना चाहिए ..न की उन्हें ख़त्म करने को कोशिश करनी चाहिए... वे उस प्रोपगंडा( तथाकथित माओवादी ) का साथ तब छोड़ेगे जब उन्हें लगेगा हम ( भारत सरकार) ज्यादा सही हैं .

बुधवार, 27 जून 2012

बशीर के ऐसे कई शेर हैं, जो लोगों की जुबान पर हैं। इनमें तजुर्बे से निकली नसीहत भी है, एक आत्मीय संवाद भी। कुछ शेर यहाँ पेश किए दे रहा हूँ:

कोई हाथ भी न मिलाएगा जो गले मिलोगे तपाक से
ये नए मिज़ाज का शहर है ज़रा फ़ासले से मिला करो

दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुंजाइश रहे
जब कभी हम दोस्त हो जाएँ तो शर्मिन्दा न हों

मुसाफ़िर हैं हम भी मुसाफ़िर हो तुम भी
किसी मोड़ पर फिर मुलाक़ात होगी

कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी
यों कोई बेवफ़ा नहीं होता

बड़े लोगों से मिलने में हमेशा फ़ासला रखना
जहाँ दरया समन्दर से मिला, दरया नहीं रहता

हम तो दरिया हैं हमें अपना हुनर मालूम है
हम जहाँ से जाएँगे, वो रास्ता हो जाएगा

मुझसे बिछड़ के ख़ुश रहते हो
मेरी तरह तुम भी झूठे हो

बड़े शौक़ से मेरा घर जला कोई आँच न तुझपे आयेगी
ये ज़ुबाँ किसी ने ख़रीद ली ये क़लम किसी का ग़ुलाम है

सब कुछ खाक हुआ है लेकिन चेहरा क्या नूरानी है
पत्थर नीचे बैठ गया है, ऊपर बहता पानी है

यहाँ लिबास की क़ीमत है आदमी की नहीं
मुझे गिलास बड़े दे शराब कम कर दे