शनिवार, 17 सितंबर 2011

हिंदी दिवस ....

हिंदी दिवस फिर बीत गया , चर्चा के केंद्रबिंदु बाज़ार ,सिनेमा,साहित्य,आकाशवाणी ,दूरदर्शन की हिंदी; राजभाषा -राष्ट्रभाषा , क्षेत्रीय भाषाएँ और हिंदी तथा कंप्यूटर में हिंदी जैसे विषय रहे । निष्कर्ष यही निकला हिंदी का विकास हो रहा है पर वह सम्मान हिंदी नहीं हासिल कर सकी जो इसे मिलना चाहिए था ।
क्या कारण है की बहुभाषी इस देश की अपनी कोई राष्ट्रभाषा तय न हो सकी जो की निर्विवाद तौर पर हिंदी ही बन सकती है।
विश्व की अन्य प्रमुख भाषाओं से तुलना करें तो हिंदी दौड़ में पिछड़ गयी लगती है । क्या आर्थिक वर्चस्व जिस भाषाई समूह का सबसे पहले स्थापित हुआ उसी की भाषा भी वर्चस्व स्थापित कर सकी । या फिर भारतीय शासक वर्ग ने हिंदी विरोध को देखते हुए संघ की भाषा के तौर इसे स्थान नहीं दिलाया या फिर उच्च वर्गीय भारतीय हीनता से ग्रस्त रहे हैं .जिससे उन्होंने अंग्रेजी के वर्चस्व को स्वीकार किया और अपनी भाषा को खुद अंग्रेजी की चेरी बना दिया । जो प्रयास हिंदी के विकास के लिए इन्हें करना चाहिए था नहीं किया।
क्या हमें अपनी भाषा में बोलकर,लिखकर,पढ़कर गर्व महशुस नहीं होता ? कही न कही ये सारे कारण सही जान पड़ते हैं।
भारतीय भाषाओ का दायरा फैलता और सिमटता जा रहा है.... देखने में यह कथन विरोधाभासपूर्ण लगता है पर सही है। सिनेमा और बाज़ार जहाँ भाषाओ का प्रसार कर रहे हैं वहीँ राजकाज की भाषा ,अकादमिक भाषा और उच्च माध्यम वर्ग के बीच (जो तेज़ी से बढ़ रहा है ) वार्तालाप की भाषा अंग्रेजी बनती जा रही है । यदपि यह पहले भी रहा है परन्तु तेज़ी इस दौर में दिखाई दे रही है ।
अंग्रेजी अंतर्राष्ट्रीय जनसंपर्क की भाषा बन चुकी है तो क्या इसे राष्ट्रीय स्तर पर भी जनसंपर्क की भाषा बना दिया जाना चाहिए ?( जो बन चुकी है )। क्या हम जनसंपर्क ही हिन्दुस्तानी भाषा नहीं गढ़ सकते ? हिंदी के अलावा अन्य प्रमुख भारतीय भाषाएँ संस्कृत या फिर हिंदी से मेल खाती हैं। तो फिर इन भाषाई समूहों के लिए हिंदी विदेशी भाषा कैसे हो गयी और अंग्रेजी देशी ? अन्य भाषाओ का ज्ञान अच्छी बात है पर अंग्रेजी बोलने ,लिखने,पढने में गर्व की अनुभूति कही न कही हीनता का धोतक है (अपनी स्थिति को लेकर )।
जिसे हम हिंदी बेल्ट कहते हैं ,ने स्वेच्छा से अपनी क्षेत्रीय बोलियों , उपभाषाओ और भाषाओ का त्याग किया है और आपस में जनसंपर्क की भाषा के तौर पर खड़ी बोली हिंदी को चुना है .जो इन्हें एक करती है ॥ पर यह तबका हिंदी को वह स्थान नहीं दिला सकता जिसकी वह उत्तराधिकारी है .......

गुरुवार, 28 जुलाई 2011

मल्टी ब्रांड रिटेल

मल्टी ब्रांड रिटेल में FDI का स्वागत किया जाना चाहिए । मुनाफाखोरी पर लगाम लगेगी और हम भारतीय बेहतर सेवाओ का फायदा उठाएंगे . जहाँ तक आशंकाए हैं वो १० साल पहले डराती थी .
आज जो ऐसी बाते करते हैं उन्हें वर्तमान में जीना सीखना होगा .

बुधवार, 9 फ़रवरी 2011

सामूहिक बलात्कार

रेप एक ऐसा गुनाह है जो बार बार औरत को सजा देता है .कुछ तर्कों के कारन गुनाहगार को मृत्युदंड नहीं दिया जा सकता . आजकल जिस तरह उत्तर प्रदेश में गेंग रेप की घटनाए बढ़ी हैं आम इंसान हिल गया है .
स्थिती इतनी बुरी है की औरते मरना बेहतर समझ रही हैं बजाए police के पास जाने या समाज में रहने के , यह सिर्फ औरत के शरीर साथ हुआ अपराध नहीं बल्कि औरत की गरिमा और सम्मान के प्रति भी अपराध है , यह सामाजिक अपराध भी है हमारी सरकार इतना तो कर सकती है की ऐसे मामलो की सुनवाई फास्ट ट्रैक अदालतों में हो और सख्त सजा दी जाए .IPC में भी बदलाव हो ।

सोमवार, 7 फ़रवरी 2011

SEX REVOLUTION IN INDIAN VILLAGES ..

आजकल उच्च वर्ग अपनी इज्जत सँभालने में लगा है खासकर जिनके घरो में १२-२० वाले बच्चे हैं , लेकिन क्यों ? कभी उच्च वर्ग के युवा निम्न वर्ग की औरतो पर एकाधिकार समझते थे (आज भी कहीं कहीं ऐसा है ).आज आर्थिक विकास तथा आरक्षण के कारण( पंचायतो , कालेजो ) निम्न वर्ग के युवा की पहुच उच्च वर्ग के घरो तक आसान है और आजकल वह किस्से सुनाने में व्यस्त हैं । श्री लाल शुक्ल राग दरबारी में जो बात कह गए वह आज मेट्रो से लेकर गाव तक एक जैसी दिखती है .

रविवार, 23 जनवरी 2011

ऐश्वर्या चली गयी .......क्या उसे हमने नहीं मारा ?

१६ साल की एक लड़की जिसने अभी दुनिया देखनी शुरु की थी ,
गोरखपुर में एक रोड एक्सिडेंट में मर जाती है पर इस मरे हुए लोगो के
शहर को कोई फर्क नहीं पड़ता .उलटे कुछ लोग उसकी गलतिया भी बता सकते हैं.
क्योकि वह हमारे घर की नहीं थी (NIMBY -NOT IN MY BACKYARD )
पर अगली लड़की हमारी बेटी या फिर बहन हो सकती है ।
अखबारों में भी यह खबर एक दिन और एक कालम में सिमट गयी क्यूंकि वह एक लड़की थी .
दुनिया कहती है SAVE PETROL SAVE MONEY ,एक साथ MOTORCYCLE या CAR से जाये गर एक ही जगह जाना हो .
गर लड़का-लड़का या लड़की -लड़की जाए तो ठीक , कोई ये नहीं पूछता एक ने अपनी बाइक कहा खड़ी की ?
पर लड़का -लड़की दोस्त हो एक साथ जाये तो गलत कैसे ? आप इतने दावे से कैसे कह सकते हैं वो गलत ही हो सकते हैं ?मेडिकल कॉलेज रोड पर सालो से यह जरुरत महसूस की जा रही है की रोड को चौड़ा किया जाए , DIVIDER बनाया जाए . पर प्रशासन को कोई मतलब नहीं
हर कुछ दिन पर कोई न कोई मरता रहता है , हमारा NO कब आ जाये पता नहीं ?
दिन के दो बजे शहर के अन्दर ट्रक कैसे चल रहा था , कभी ट्रक कभी ट्रेक्टर से बच्चे मरते रहे . पर पुलिस से कोई क्यों नहीं पूछता ?????????
हम नीद में ही रहेगे क्यूंकि हम बेशर्म हैं , ये तो एक दो हैं , यहाँ तो हर साल सैकड़ो बच्चे दिमागी बुखार से मर जाते हैं .

सोमवार, 17 जनवरी 2011

कांग्रेस और महंगाई

कांग्रेसी भी ज्यादा गलत नहीं हैं , दिक्कत है मैनेजमेंट में , पूंजीवादी बाज़ार में समायोजन बाज़ार की शक्तियों और योग्तम की उत्तरजीविता
के आधार पर होता है पर सरकार कल्याणकारी राज्य की तरह लोगो के जीवन को पुश करके बेहतर बनाने का भी प्रयास करती है.
यहाँ जरुरी होता है सरकारी तंत्र ढंग से और बेहतर काम करे पर यह कोई काम करना ही नहीं चाहता .