मंगलवार, 20 अक्तूबर 2009

हिंद स्वराज

मैंने हिंद स्वराज बहुत दिनों पहले पढ़ी थी , और अक्सर सुनता हूँ की अगर गाँधी को समझना हे तो हिंद स्वराज ध्यान से पढो, तो आज फिर से पढ़ी। पर एक बार मै फिर से निराश ही हुआ क्योकि मुझे पूरी पुस्तक में सत्याग्रह के विचार के सिवा बाकी बेमतलब लगता है। गांधीवादियोंको भले ये अच्छा न लगे वो भी तब जब अगले महीने हिंद स्वराज के १०० साल पुरे हो रहे हैं।

2 टिप्‍पणियां:

  1. किसी पुस्तक का प्रथम मूल्यांकन उसकी तत्कालीन परिस्थितियों को देखते हुए शुरू करनी चाहिए..गांधी ने कोई गांधीवाद शुरू नहीं किया उन्हें ऐसी किसी भी चीज से सख्त चिढ़ थी...बिना कुछ निजी प्रयोग किये बिना गांधी को समझना एक बचकानी सी बात है, जैसा कि भीखू पारीख लिखते हैं और मै अपने अनुभव से इसे सही मनाता हूँ..यदि वाकई रुचि रखते हों तो Anthoni J.Parrel की edited "हिंद स्वराज" का अध्ययन करें..कई नए और व्यापक परिप्रेक्ष्य से आप रूबरू होंगे आप..गांधी के नाम से कुछ लोग हमेशा संवाद की गुंजायश बनाये रखते हैं तो इसलिए नहीं कि महापुरुषों की कमी है..कुछ है गांधी में .....कही आप कुछ "खास" चूक तो नहीं रहे...यदि समय हो तो मेरा लिखा ये आलेख भी पढ़ लेवें..विनम्र निवेदन है...बाकि आप 'एक खासा अलग राह' लेने के लिए स्वतंत्र हैं..दीवाली की अनगिन शुभकामनायें....http://sadagrah.blogspot.com/2009/10/blog-post_03.html

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  2. पढ़कर ऐसा लगा आपके मन में देश के इतिहास को समझने की एक ईमानदार ललक प्रतीत होती है। हिंद स्वराज का सिर्फ ऐतिहासिक महत्त्व ही नहीं, बल्कि स्थायी महत्त्व भी है।

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